My Opinion : अनुवंदना माहेश्वरी
दुनिया भर में आसमान से आग बरस रही है। धरती जल रही है और पिघल रहे हैं ग्लेशियर। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहें या प्रकृति के छेड़छेड़ा का परिणाम, जो अब मनुष्य भोग रहा है। विकास के नाम पर विश्व भर में हरे-भरे प्राकृतिक पेड़ काटकर कंक्रीट के जंगल उगाये जा रहे हैं। यही हाल रहा तो हमारी धरती धीरे-धीरे आग के एक गोले में परिवर्तित हो जाएगी। ऐसे में धरती पर जीवन बचाने के लिए प्रकृति को उसका श्रृंगार वापस करना यानि अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही एकमात्र विकल्प है।
विश्व के अनेक देश अपने स्तर से इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। अधिक विकसित देश यानि अधिक कार्बन का उत्सर्जन। इस सबके बीच एक अच्छी खबर फिलीपीन्स से आयी है कि वहां सरकार ने एक अनोखा कानून बनाया है। इस कानून के अनुसार कम से कम 10 पेड़ लगाने वाले छात्र को ही विश्वविद्यालयों की तरफ से स्नातक (ग्रेजुएशन) की डिग्री प्रदान की जाएगी।
फिलीपींस सरकार ने पर्यावरण बचाने के लिये यह कानून इसलिए लागू किया है। फिलीपीन्स की हालत ये है कि भारी मात्रा में वनों की कटाई से देश का कुल वन आवरण 70 फीसदी से घटकर 20 फीसदी पर आ गया है। इस कानून के तहत सरकार ने देश में एक साल में 175 मिलियन से अधिक पेड़ लगाने, उनका पोषण करने और उन्हें विकसित करने का लक्ष्य रखा है। हर छात्र को अपने स्नातक की डिग्री पाने के लिए कम से कम 10 वृक्ष़ लगाना अनिवार्य किया गया है।
इस कानून को ’ग्रेजुएशन लीगेसी फॉर द इन्वायरन्मेंट एक्ट’ नाम दिया है, जिसे फिलीपींस की संसद में सर्वसम्मति से पास किया गया। यह कानून कॉलेजों, प्राथमिक स्तर के स्कूलों और हाईस्कूल के छात्रों के लिए भी लागू होगा। सरकार ने वो इलाके भी चुन लिये हैं, जहां पेड़ लगाए जाएंगे। चयनित क्षेत्रों में मैनग्रोव वनक्षेत्र, सैन्य अड्डे और शहरी क्षेत्र के इलाके शामिल हैं। स्थानीय सरकारी एजेंसियों को इन पेड़ों की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है।
ऐसे में अगर भारत की बात करें तो यहां 130 करोड़ की आबादी है। लगभग सात सौ विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध 3500 कॉलेजों में एक अनुमान के मुताबिक 2.83 करोड़ विद्यार्थियों ने 2016-17 में अण्डर ग्रेजुएट कोर्सेज में पंजीकरण कराया था। इसके अलावा करीब 40 लाख ने पोस्ट ग्रेजुएशन और 2.13 लाख ने पीजी डिप्लोमा में एडमिशन लिया। कुल मिलाकर देखें तो लगभग सवा तीन करोड़ विद्यार्थी एक साल में विश्वविद्यालय के विभिन्न कोर्सेज के लिए एडमिशन लिये। इसके अलावा विभिन्न डिप्लोमा कोर्सेंज, पीएचडी आदि में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को भी अगर जोड़ लें तो यह संख्या साढ़े तीन करोड़ तक पहुंच जाती है।
भारत भी बीते कुछ सालों से ग्लोबल वार्मिंग से ज्यादा प्रभावित हुआ है। यहां भी दिनोंदिन बनते और बढ़ते हाईवेज, विकसित होते नये औद्योगिक आस्थानों और जनसंख्या विस्फोट से निपटने में उसे बसाने के लिए बनती जा रही गगनचुम्बी इमारतों ने यहां के तापमान को और बढ़ा दिया है। इन बहुमंजिला इमारतों में गर्मी से बचने को लगने वाले अनगिनत एयर कंडीशर्स से हालत और बदतर होती जा रही है। ये सारा ‘‘विकास’’ जंगलों के विनाश के बाद ही संभव हो सका है।
जबकि सारी मानव जाति अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह प्रकृति पर ही निर्भर है। सांस लेने के लिए हवा हो या पीने के लिए पानी या फिर खाने के लिए भोजन। इन सभी के लिए मनुष्य प्रकृति पर ही आश्रित है। इसके बावजूद प्रकृति से खिलावाड़ जारी है। ऐसा करके मनुष्य अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ही खाई खोदने में दिनरात जुटा है। हालांकि विश्व ने इस बात को 1972 में ही समझ लिया था। 05 जून 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस पहली बार मनाते हुए चिन्ता जतायी गयी और पर्यावरण के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए संकल्प लिया गया। इसके इतर बीते 47 सालों में पर्यावरण के खिलवाड़ बढ़ता गया।
आज स्थिति यह है कि पांच साल पूर्व तक जिन शहरों का अधिकतम तापमान 32 से 35 डिग्री रहा करता था वहां आज 46 डिग्री तक पहुंच गया है। भारत के अनेक शहरों में तापमान ने इस साल नये कीर्तिमान स्थापित किये और पारा 50 डिग्री को भी पार कर गया। यदि यह तापमान 57 डिग्री तक पहुंच जाएगा तो रोटी सेकने के लिए ईंधन की जरूरत नहीं रह जाएगी। घर की छत पर या आंगन में पड़े तपते पत्थर पर डालकर रोटी सेंकी जा सकेगा। यह अलग बात है कि रोटी सेंकने वाले हाथों में भी फफोले पड़ जायेंगे। शायद वह रोटी सेंकने लायक ही नहीं रह जायें।
भयावह होती इस परिस्थिति में फिलीपीन्स ने रोशनी की एक किरण पूरी दुनिया को दिखायी है। भारत में इस समय एक स्थिर और मजबूत फैसले लेने वाली सरकार है। वह फिलीपीन्स के ’ग्रेजुएशन लीगेसी फॉर द इन्वायरन्मेंट एक्ट’ की तरह भारत में भी एक ऐसा कानून ले आये तो भारत चंद वर्षों में ही पर्यावरण के संकट से निपट लेगा। यहां साढ़े तीन करोड़ छात्र यदि प्रति वर्ष 10 पेड़ लगायेंगे तो 350 करोड़ वृक्ष एक साल में लग जायेंगे।
सरकार को बस, इन छात्रों को देनी है तो दिशा और जमीन, जहां ये पेड़ लगाये जा सकें। इसके लिए भी फोर लेन, सिक्स लेन बनाये गये हाईवेज़ के डिवाइडर्स पर अशोक के पेड़ लगाये जा सकते हैं। इसके अलावा राजमार्गों के किनारे भी पेड़ लगाये जा सकते हैं। ग्राम समाज की भूमि, वन विभाग की भूमि, रेलवे की निष्प्रयोज्य पड़ी भूमि को पेड़ लगाने के उपयोग में लाया जा सकता है।