शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है। पितृपक्ष में सूर्य दक्षिणायन होता है। इसीलिए पितर अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन, पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध करें।
जैसे श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे। यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध करना चाहिए। सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 25 सितंबर से 09 अक्टूबर तक हैं। तैत्रीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए।
श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए। आसन में लोहे का आसन इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध होता है।
यहां कीजिए पिंडदान
शास्त्रों में पिंडदान के लिए तीन जगह बताई गईं हैं। जिनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है। पितृ-पक्ष मेला। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
More Stories
Loksabha Elections 2024:प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी से दाखिल किया नामांकन,शाह-राजनाथ,योगी रहे मौजूद
Lok Sabha Elections 2024 :संभल मे सपा प्रत्याशी जिया उर रहमान की पुलिस से तीखी नोकझोंक…चुनाव में धांधली का भी लगाया आरोप
CISCE Result 2024: CISCE की 10वीं और 12वीं के परिणाम घोषित, लड़कियों ने मारी बाजी