अयोध्या। रामलला आखिरकार 493 साल बाद चांदी के झूले पर विराजमान हो गए हैं। शुक्रवार को नागपंचमी के शुभ दिन वह चांदी के झूले पर झूल रहे हैं। इसी के साथ राम जन्मभूमि में झूलनोत्सव की शुरुआत हो गई है। रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास अपने हाथों से भगवान को झूला झूला रहे हैं। श्रद्धालु भी रामलाल को झूला झुला सकेंगे। सावन पूर्णिमा तक रामलला चांदी के झूले में अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
21 किलो चांदी का बना है झूला
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 21 किलो चांदी का झूला बनवाया है। 498 सालों के बाद रामलला के यहां झूलनोत्सव हो रहा है। रामलला के मंदिर को भी सुंदर फूलों से सजाया गाया है.
आचार्य सत्येंद्र दास के अनुसार विशेष पूजन के बाद रामलला सहित चारों भाइयों के विग्रह को झूले पर स्थापित किया गया। सनातन उपासना परंपरा और शास्त्रों के मर्मज्ञ जगद्गुरु रामानुजाचार्य डॉ. राघवाचार्य के अनुसार यह रामलला के गौरव की वापसी ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीयता के गौरव की प्रतिष्ठा का क्षण है, वह इसलिए कि आराध्य की प्रतिष्ठा के साथ समाज और देश की प्रतिष्ठा सुनिश्चित होती है।
अयोध्या में करीब 493 वर्ष पहले भव्यता-दिव्यता का पर्याय राम मंदिर तोड़े जाने के बाद से ही रामलला की सेवा-पूजा उपेक्षित रही है। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम फैसला आने के साथ रामलला को टेंट के अस्थाई मंदिर से बाहर करने का प्रयास शुरू कर दिया गया। अब यहां न केवल भव्य मंदिर निर्माण की प्रक्रिया निरंतर आगे बढ़ रही है, बल्कि रामलला के दरबार में वे सारे उत्सव होने लगे हैं, जो वैष्णव आस्था के शीर्ष केंद्र पर होने चाहिए। इन उत्सवों से राम जन्मभूमि शताब्दियों तक वंचित रही है।